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Wednesday, August 8, 2018

9 अगस्त क्रांति दिन माहिती

भारत छोड़ो आन्दोलन


 द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को आरम्भ किया गया था|यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद ९ अगस्त सन १९४२ को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था।

क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय काँगेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुरजैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।

इतिहाससंपादित करें


"मरो नहीं, मारो!" का नारा १९४२ में लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड किया।
।। भारतछोडो का नारा युसुफ मेहर अली ने दिया था! जो युसूफ मेहरली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे.।।
विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए ८ अगस्त १९४२ की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेसमें चले गये। ९ अगस्त १९४२ के दिन इस आन्दोलन को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने प्रचण्ड रूप दे दिया। १९ अगस्त,१९४२ को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गये। ९ अगस्त १९२५ को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से 'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष ९ अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस" मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गान्धी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ९ अगस्त १९४२ का दिन चुना था।
९ अगस्त १९४२ को दिन निकलने से पहले ही काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गान्धी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द किया गया था। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में ९४० लोग मारे गये, १६३० घायल हुए,१८००० डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा ६०२२९ गिरफ्तार हुए। आन्दोलन को कुचलने के ये आँकड़े दिल्ली की सेण्ट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे।

मूल सिद्धांतसंपादित करें

भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जनांदोलन था जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे। इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया। जिस दौरान कांग्रेस के नेता जेव्ल में थे उसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फ़ैलाने में लगे थे। इन्हीं सालों में लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौका मिला जहाँ अभी तक उसका कोई खास वजूद नहीं था।
जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधी जी को रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार बात की। 1945में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी। यह सरकार भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।

जनता का मतसंपादित करें

1946 की शुरुआत में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव कराए गए। सामान्य श्रेणी में कांग्रेस को भारी सफ़लता मिली। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। राजनीतिक ध्रुवीकरण पूरा हो चुका था। 1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास भी विफ़ल रहा। वार्ता टूट जाने के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का आह्‌वान किया। इसके लिए 16 अगस्त 1946 का दिन तय किया गया था। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब तक फ़ैल गई। कुछ स्थानों पर मुसलमानों को तो कुछ अन्य स्थानों पर हिंदुओं को निशाना बनाया गया।

विभाजन की नींवसंपादित करें

फ़रवरी 1947 में वावेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया गया। उन्होंने वार्ताओं के एक अंतिम दौर का आह्‌वान किया। जब सुलह के लिए उनका यह प्रयास भी विफ़ल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन उसका विभाजन भी होगा। औपचारिक सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया। उस दिन भारत के विभिन्न भागों में लोगों ने जमकर खुशियाँ मनायीं। दिल्ली में जब संविधान सभा के अध्यक्ष ने मोहनदास करमचंद गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देते हुए संविधान सभा की बैठक शुरू की तो बहुत देर तक करतल ध्वनि होती रही। असेम्बली के बाहर भीड़ महात्मा गाँधी की जय के नारे लगा रही थी।

स्वतंत्रता प्राप्तिसंपादित करें

15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में महात्मा गाँधी नहीं थे। उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी न तो किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया, न ही कहीं झंडा फ़हराया। गाँधी जी उस दिन 24 घंटे के उपवास पर थे। उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी। उनका राष्ट्र विभाजित था हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे। उनके जीवनी लेखक डी-जी- तेंदुलकर ने लिखा है कि सितंबर और अक्तूबर के दौरान गाँधी जी पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों के चक्कर लगा रहे थे। उन्होंने सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से आह्‌वान किया कि वे अतीत को भुला कर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने की बजाय एक-दूसरे के प्रति भाईचारे का हाथ बढ़ाने तथा शांति से रहने का संकल्प लें।

धर्म निरपेक्षतासंपादित करें

गाँधी जी और नेहरू के आग्रह पर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक प्रस्ताव पारित कर दिया। कांग्रेस ने दो राष्ट्र सिद्धान्त को कभी स्वीकार नहीं किया था। जब उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध बँटवारे पर मंजूरी देनी पड़ी तो भी उसका दृढ़ विश्वास था कि भारत बहुत सारे धर्मों और बहुत सारी नस्लों का देश है और उसे ऐसे ही बनाए रखा जाना चाहिए। पाकिस्तान में हालात जो रहें, भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य की ओर से संरक्षण का अधिकार होगा। कांग्रेस ने आश्वासन दिया कि वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।
    मराठी माहिती

इंग्रजांच्या गुलामगिरीतून देशाला मुक्त करण्यासाठी ज्यांनी प्राणांचे बलिदान दिले त्यांना आठवण्याचा दिवस म्हणजे ९ आॅगस्ट, अर्थात क्रांती दिन! स्वातंत्र्यलढ्याची मशाल पेटवत देशातून इंग्रजी राजवटीला नेस्तनाबूत करण्याची हाक देणाऱ्या तमाम क्रांतिवीरांना अभिवादन करण्याचा हा दिवस, पण स्वातंत्र्याचा उपभोग घेण्यात दंग असलेल्या आजच्या पिढीसाठी हा दिवस ‘अनोळखी’ झाला आहे. सर्वांच्या हृदयात क्रांतिवीरांची ती मशाल आठवणीच्या रूपाने धगधगत राहणे अपेक्षित असले तरी ती मशाल केव्हाच विझली आहे. एवढेच काय प्रशासकीय यंत्रणेसाठीही या दिवसाचे महत्व आता औपचारिकतेपुरते शिल्लक आहे.



दीडशे वर्षे भारतावर राज्य करणाऱ्या इंग्रजांना देशातून हुसकावून लावण्यासाठी ९ आॅगस्ट १९४२ रोजी क्रांतीची ठिणगी पडली होती. या लढ्यात गोंदिया जिल्ह्यातील काही लोकांनी हौतात्म्य पत्करले. त्यांच्या स्मृती जपण्यासाठी त्या क्रांतिलढ्याची आठवण म्हणून ९ आॅगस्टला ‘क्रांती दिन’ पाळला जातो. परंतु आज या दिवसाचे महत्व नवीन पिढीलाच नाही, तर नेते-पुढाऱ्यांनाही राहिलेले नाही.




मुंबईत भऱलेल्या कॉंग्रेस अधिवेशनात महात्मा गांधींनी ‍केलेली 'छोडो भारत'ची गर्जना ‍आणि दिलेला ''करेंगे या मरेंगे'' हा मंत्र नऊ ऑगस्टच्या दिवशी संपूर्ण देशात पसरला होता. त्यामुळे यादिवशी क्रांतीची ज्योतच जणू पेटली. देशभरात ब्रिटिश सत्तेला हाकलून लावण्यासाठी आंदोलनांना सुरवात झाली. प्रत्येकाला जे योग्य वाटेल ते तो करत होता. ब्रिटिश सत्ता पार हादरून गेली होती. हे रोखायचे कसे असा प्रश्न पडला होता. त्याची पूर्वसूचना आदल्या रात्रीच्या भाषणातच मिळाल्याने ब्रिटिशांनी पहाटे पाच वाजताच मुंबईत बिर्ला हाऊसमधून गांधीजी आणि त्यांच्या कुटुंबीयांना ताब्यात घेतले. यावेळी गांधीजींनी जनतेला संदेश दिला, ''आता प्रत्येकजणच पुढारी होईल.''

ब्रिटिशांनी काँग्रेसच्या सर्व नेतेमंडळींना अधिवेशनाच्या जागीच अटक केली होती. त्यांना सर्वांना पुण्यात हलविण्यात आले. चिंचवड स्टेशनवर गाडी थांबवून महात्मा गांधी, कस्तुरबा गांधी, महादेवभाई देसाई आणि मीराबेन या चौघांना खाली उतरवून त्यांची रवानगी गुप्त ठिकाणी करण्यात आली. बाकीच्यांना पुढे नेण्यात आले. सरकारने गुप्तता पाळली तरी बातमी फुटलीच. गांधीजींना पुण्यात आगाखान पॅलेसमध्ये आणि नेहरू, पटेल, आझाद या मंडळींना अहमदनगरच्या किलल्यात ठेवण्यात आल्याचे समजले.
नेत्यांची धरपकड झाल्याने आंदोलन लोकांच्या ताब्यात गेले. देशभर जागजागी हरताळ, मिरवणुका, मोर्चे यांना ऊत आला. सरकारने लोकांना एकत्र जमण्यास बंदी घातली. पण लोक आता आदेश मानायला तयार नव्हते. पोलिसांच्या लाठीहल्ल्याला, गोळीबाराला जुमानत नव्हते. जाळपोळ, पोलिसांचे खून, टेलिफोन व तारा कापणे असे प्रकार सुरू झाले.
जणू लोकांनी ब्रिटिश सत्तेविरूद्ध युद्ध पुकारले होते. संपूर्ण देश पेटला होता. दंगल जाळपोळ, गोळीबार, रेल्वेचे अपघात, सरकारी कार्यालयांना आगी लावणे, सरकारी खजिन्यांची लुटालूट असे प्रकार सुरू होते. सरकार दडपशाही करून पाहिजे त्याला विनाचौकशी अटक करत होती. सारा देश गोंधळलेल्या अस्थिर परिस्थितीत सापडला होता.
सरकारने या सर्व प्रकाराला गांधीजींना जबाबदार ठरवले. गांधीजींना याचा इन्कार करून याच्या निषेधार्थ 21 दिवसांचे उपोषणही केले. पण जगभरातील परिस्थितीही बदलत होती. युद्धाचे पारडे दोस्त राष्ट्रांच्या बाजूने झुकत होते. अमेरिका नावाची सत्ता उदयास येत होती. तिने युद्धाचे पुढारीपण घेतले होते. या साऱ्या गदारोळाच्या पार्श्वभूमीवर क्रांतीसंग्रामाची तीव्रता ओसरली.


गोंदिया जिल्ह्यातील हुताम्यांचा इतिहास


तिरोडा येथील शंकरदयाल मिश्रा यांनी आपल्या उमेदीच्या काळात स्वत:ला स्वातंत्र्यलढयात झोकून देऊन गांधीवादी मार्गाने इंग्रज सरकारविरूध्द लढा दिला. त्यांना इंग्रज सरकारने अटक करून जबलपूरच्या कारागृहात टाकले़ मोडेन पण वाकणार नाही असा त्यांचा बाणा होता़ कारागृहातील कैद्यांना दिल्या जाणाऱ्या निकृष्ट भोजनाबद्दल त्यांनी संताप व्यक्त केल्यानंतर त्यांना मरणयातना देण्यात आल्या. त्यांना नंतर रूग्णवाहिकेने तिरोडयाला आणून सोडण्यात आले़ त्यानंतर अल्पावधीतच दि़१९ एप्रिल १९४३ ला त्यांची प्राणज्योत मालवली़ ते १०० दिवस शेळीसारखे जगण्यापेक्षा ८ दिवस वाघासारखे जगले़ मात्र नवीन पिढीला त्यांच्या स्मारकातून ही प्रेरणा घेण्यासाठी कोणीही पुढाकार घेताना दिसत नाही.

कुऱ्हाडीच्या जान्या-तिम्या या बंधूंच्या बलिदानाची आठवण म्हणून तिथे त्यांचे स्मारक उभारण्यात आले आहे. पण दुर्दैव म्हणजे या बंधूंनी दिलेल्या बलिदानाचा इतिहास आज त्या परिसरातील शाळांमध्ये शिकणाऱ्या विद्यार्थ्यांनाही माहीत नसावा. जान्या-तिम्या स्मारकाचे तर छतही उडाले आहे. पण त्याची ना प्रशासनाला पर्वा आहे ना लोकप्रतिनिधींना. अशा परिस्थितीत आॅगस्ट क्रांतीदिनाची केवळ औपचारिकता पूर्ण केली जात आहे.
गोंदियातील सुभाष गार्डनमध्ये भोला अनंतराम किराड यांचे स्मारक आहे. जिल्ह्यातील इतर दोन हुतात्मा स्मारकांच्या तुलनेत या स्मारकाची अवस्था चांगली आहे. पण स्मारकाच्या केवळ समोरील बाजुची देखरेख ठेवली जाते. बाकी बाजुने कमरेएवढे गवत वाढलेले आहे. आॅगस्ट क्रांती दिनाच्या पूर्वसंध्येलाही ते गवत कापण्यात आले नाही, यावरून त्या स्मारकाच्या देखभालीसाठी नगर परिषद किती गंभीर आहे याची कल्पना येते. या स्मारकात आता सुभाषचंद्र बोस यांच्या फोटोसह श्रीरामाचे दोन फोटोही लागले आहेत. या ठिकाणी सकाळ-संध्याकाळ धार्मिक सत्संग होत असल्याचे गार्डनच्या कर्मचाऱ्याने सांगितले. पण स्मारकाच्या भोवती साफसफाई करण्याची जबाबदारी घेण्यासाठी कोणीही तयार नाही.

पायाभूत चाचणी गुणदाण तक्ते 2023

पायाभूत चाचणी गुणदाण तक्ते 2023-24 इयत्ता तिसरी ते आठवीसाठी चे सर्व विषयांचे गुणांचे संकलन तक्ते एक्सएल स्वरूपात डाउनलोड करण्यासाठी खालील Do...